दालचीनी की खेती: कैसे, फायदे, पौधे की सुरक्षा तथा उपयोग

दालचीनी की खेती: दालचीनी की खेती करना बेहद आसान है परंतु आपको इसकी जानकारी होनी चाहिए। दालचीनी का पुष्प जनवरी में तथा फल जून से अगस्त के मध्य में पकता है। पूर्ण रूप से पके हुए फल को पेड़ से तोड़कर अथवा जमीन पर गिरे हुए फलों को उठाकर एकत्रित कर लेते हैं । इन फलों के गुदे को धोकर बीज अलग कर लेते हैं तथा बिना देरी के बीज की बुआई कर देते हैं। इन बीजों को बालुई बेड या बालू, मृदा तथा सदा हुआ गाय का गोबर का मिश्रण (3:3:1) युक्त पोलीथीन बेग में बुआई करते हैं। बीजों का अंकुरण 15-20 दिनों पश्चात् शुरू होने लगता है।पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए निरंतर सिंचाई करना चाहिए। इन बीच पौधों को छ: महीने की आयु तक कृत्रिम छाया प्रदान करना चाहिए ।

क्या आप जानते है दालचीनी एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसकी अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दालचीनी भूरे रंग की सुगंध से भरपूर मुलायम, और चिकनी होती है, जो भोजन में एक स्वाद जोड़ने के साथ विकार, दांत, सिरदर्द, चर्म रोग, भूख न लगने और मासिक धर्म से जुड़ी परेशानियों में राहत देने का काम करती है।

कुछ महत्वपूर्ण बातें दालचीनी बारे में

पानी की ज़रूरतकाफ़ी
खेतीप्रत्यारोपण
श्रमउच्च
सूरज की रोशनीकम
पीएच मान (Ph Value)6.2 – 7.2
तापमान20 – 30°C
निषेचनपहले अंकुर के लिए 20 ग्राम एन, 18 ग्राम पी2ओ5 और
25 ग्राम के2ओ/की उर्वरक खुराक की सिफारिश की जाती है।
  1. यह श्रीलंका एवम दक्षिण भारत मे बहुतायत से मिलता है।
  2. यह एक छोटा सदाबहार पेेड़ है जो 10-15 मीटर ऊंचा होता है।
  3. इसकी छाल से मसाला बनाया जाता है।
  4. पत्तियों के तेल से मच्छर भगाया जाता है।
  5. रसोई घर मे सब्जी को स्वादिष्ट बनाने में उपयोग किया जाता है।

दालचीनी प्रयोग

दालचीनी की छाल एक मसाले के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह मुख्यतः एक मसाला और स्वादिष्ट बनाने का मसाला सामग्री के रूप में रसोई में कार्यरत हैं। यह चॉकलेट की तैयारी में प्रयोग किया जाता है, विशेष रूप से मेक्सिको, जो सच दालचीनी के मुख्य आयातक है। यह भी सेब पाई, डोनट्स और दालचीनी बन्स के रूप में के रूप में अच्छी तरह मसालेदार कैंडी के रूप में कई डेसर्ट व्यंजनों, में प्रयोग किया जाता है, चाय, गर्म कोको और liqueurs. कैसिया बजाय सच दालचीनी, मीठा व्यंजन में उपयोग के लिए अधिक उपयुक्त है।

  • छाल का चूर्ण- 1 से 3 ग्राम
  • पत्तों का चूर्ण- 1 से 3 ग्राम
  • तेल-  2 से 5 बूंद

पौधे की सुरक्षा, रोग एवं रोकथाम

पर्ण चित्ती एवं डाई बैंकपर्ण चित्ती एवं डाई बैक रोग कोलीटोत्राकम ग्लोयोस्पोरियिड्स नामक किट द्वारा होता है।
बीजू अगंमारीयह रोग डिपलोडिया स्पीसीस नामक किट द्वारा पौधों में पौधशाला के अंदर होता है।
भूरी अगंमारीयह रोग पिस्टालोटिया पालमरम नामक किट द्वारा होता हैं।
कीट दालचीनी तितलीयह नए पौधों तथा पौधा शाला का प्रमुख कीट है तथा यह साधारणत: मानसून काल के बाद दिखयी देता है। बचाव हेतु लक्षण दिखने पर दवा का छिड़काव करना चाहिए।
लीफ माइनरयह मानसून काल में पौधशाला के अंदर पौधों कोसर्वाधिक हानि पहुँचाने वाला कीट है।
रोकथामरोकथाम हेतु नई पत्तों के निकलने पर 0.05% क्वनालफोस का छिड़काव करना प्रभावकारी होता है।

दालचीनी के फायदे

1. यह न केवल स्वाद को बढाने के काम आता है बल्कि इससे कई सेहतबर्धक उत्पादों को बनाया जाता है। इसका प्रयोग न केवल भारत मे बल्कि विदेशों में भी मसालेदार कैंडी बनाने के लिए होता है। दालचीनी का पूरा पौधा ही औषधिय गुणों से भरा हुआ है। दालचीनी पत्ती के तेल के लिए मच्छर के लार्वा को मारने में बहुत प्रभावी होना पाया गया है।

2. शहद और दालचीनी के मिश्रण में मानव शरीर के अनेकों रोगों का निवारण करने की अद्भुत शक्ति है। दुनियां के करीब सभी देशों में शहद पैदा होता है।

3. आज कल की सबसे बड़ी प्रॉब्लम गुप्त रोग बन चुकी है। ब्लाडर इन्फ़ेक्शन होने पर दो बडे चम्मच दालचीनी का पावडर और एक बडा चम्मच शहद मिलाकर गरम पानी केदेने से मूत्रपथ के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।

4. आज कल बुजुर्गों यहाँ तक कि बच्चों ने दर्द एक आम बात बन चुकी है जिन्हें जोड़ों के दर्द की समस्या हो, उन्हें हर दिन सुबह आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को एक बड़े चम्मच शहद में मिला कर सेवन करने से बहुत जल्दी फायदा होता है।- दांत हमारे आकर्षण का मुख्य केंद्र होती है किंतु हम अपने खान पान पर ध्यान नही दे पाते है जिससे दांतों में कीड़े लग जाते है। दांत में कीड़ा लगने, या दर्द होने पर दालचीनी के तिेल में भीगी रूई का फाहा लगाने से आराम मिलता है।

5. बुजुर्गों को दालचीनी के तेल की कुछ बूंदें कान में डालने से कम सुनाई देने की समस्या से छुटकारा मिलता है।

6. दालचीनी से मुँह के बदबू को भी दूर किया जा सकता है और इससे मसूड़े भी मजबुत होते है।

7. कभी-कभी कंधे में दर्द होता है। दालचीनी का प्रयोग करने से कंधे का दर्द ठीक हो जाता है।

दालचीनी का पेड़ कैसे लगाएं

खेत की तैयारी

  • भूमि को अच्छे से साफ करके 50 सेंटीमीटर लंबाई और चौड़ाई के गड्ढे तैयार करें।
  • गड्ढों के बीच की दूरी 3 मीटर रखें।
  • पौधों को जून-जुलाई में लगाएं।
  • अगस्त-सितंबर में पौधों की गुड़ाई करें।

दालचीनी के उपयोगी भाग

दालचीनी का सेवन कई तरह से किया जा सकता है, जो ये हैं:

  • पत्ते
  • छाल (Dalchini twak)
  • जड़
  • तेल 

दालचीनी खाने के क्या नुकसान है?

त्वचा को पंहुचा सकता है नुकसान दालचीनी की बात करें तो इसमें बर्निंग इफ़ेक्ट होता है,इसलिए इसके ज्यादा सेवन से आपको जलन की समस्या भी हो सकती है।

  • सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
  • ब्लड शुगर अधिक मात्रा में कम हो जाता है।
  • लिवर की सेहत को हो सकता है नुकसान
  • होठों और मुँह में एलेर्जी को बढ़ाता है।

दालचीनी की किस्में

  • नवश्री (navshri)
  • नित्यश्री(nityashri)
  • सिनामोमम वर्म (Cinnamomum Verum)
  • सिनामोमम कैसिया (Cinnamomum Cassia)
  • सिनामोमम लौरेरी (Cinnamomum loureirii)

दालचीनी का पेड़

इस विडीओ के माध्यम से हम जानेंगे कि दालचीनी का पेड़ कैसा होता है, दालचीनी कैसे बनती है तथा इसे किस तरह से खाने योग्य बनाया जाता है:

कटाई एवं संसाधन

दालचीनी का पेड़ 10-15 मीटर तक ऊँचा हो सकता हैं, लेकिन समय समय पर उसकी काट छांट करते रहना चाहिए । जब पेड़ दो वर्ष पुराना तथा जमीन से लगभग 12 सें.मीटर ऊँचा हो तब जून-जुलाई में काट छांट करना चाहिए । ठूंठ को जमीन में दबा कर मिट्टी से ढकना चाहिए। यह प्रक्रिया ठूंठ से शाखा के विकास को बढ़ावा देती है। उत्तरवर्ती मौसम में मुख्य तने से किनारे वाली शाखाओंं के विकास का पुनरावर्तन करना चाहिए। इसलिये पेड़ का संभावित आकार बुश की तरह तथा 2 मीटर ऊँचा होगा तथा लगभग 4 वर्ष के उपरांत शाखाओंं में उत्तम छाल विकसित हो जाएगी। रोपण के लगभग 5 वर्ष बाद पहली कटाई कर सकते हैं ।

केरल की परिस्थितियों में शाखाओंं को सितम्बर से नवम्बर में कटाई करते हैं। कटाई हर एक दूसरे साल करते हैं तथा उत्तम छाल निकलने के लिए शाखा का एक सामान गहरा भूरा रंग तथा 1.5-2.0 से. मीटर मोटाई होनी चाहिए। छाल की उत्तमता को जानने के लिए तेज चाकू की सहायता से ‘कट परीक्षण’ करते हैं। यदि छाल को सरलता पूर्वक अलग किया जा सकता है तब तुरंत छाल की कटाई आरम्भ कर सकते हैं। जब पौधा 2 वर्ष का हो जाये तब तुरंत तने को जमीन के पास से कटना चाहिए । ऐसी शाखाओं को पत्तियों को निकाल कर आपस में बांध देना चाहिए। कटी गई शाखा से 1.00 -1.25 मीटर लम्बे सीधे टुकड़े काटना चाहिए। कटाई, खुरचने तथा छिलने के बाद की कार्य विधि हैं। छाल निकालना एक विशेष कार्य है जिसके लिए कुशल एवं अनुभव चाहिए । इसके लिए विशेष प्रकार के निर्मित चाकू जिसका एक सिरा मुड़ा हुआ होता है । बाहरी छाल को पहले खुरच कर निकाल लेते हैं । आसानी से छाल उतारने के लिये खुर्चे हुए भागों को पीतल अथवा एल्युमिनियम की छड की सहायता से चमकाते हैं ।

फसल संबंधी रोग

Leaf Spot and Dieback of Cinnamon (लीफ़ स्पॉट और डाइबैक)

Description:

यह रोग कवक कोलेटोट्रिचम ग्लियोस्पोरियोइड्स (पेन्ज़।) पेन्ज़ के कारण होता है। और सैक।

Organic Solution:

संक्रमित शाखाओं को काट देना चाहिए|

Chemical Solution:

रोग की शुरुआत के साथ, फसल पर बोर्डो मिश्रण (5:5:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) या मैनकोजेब (0.25%) और कार्बेन्डाजिम (0.1%) के संयोजन का छिड़काव करें और 14 दिनों के अंतराल पर दोहराएं।

Canker (नासूर)

Description:

यह रोग फाइटोफ्थोरा सिनामोमी (phytophthora cinnamomi ) रैंड्स के कारण होता है। इस फसल की छाल का नासूर सुमातारा और इंडोनेशिया के पश्चिमी तट पर होता है। भारत से भी रोगज़नक़ की सूचना मिली है।

Organic Solution:

फसल को बढ़ावा देने के लिए नीम केक @ 40 किग्रा/एकड़ का उपयोग केवल नेमाटोड प्रभावित क्षेत्र में सुनिश्चित नमी की स्थिति में करें|

Chemical Solution:

इस रोग के नियंत्रण के लिए मिट्टी में सल्फर का प्रयोग करने की सिफारिश की गई है।

Grey Blight (ग्रे ब्लाइट)

Description:

ग्रे ब्लाइट पेस्टलोटिया पाल्मारुम ( Pestalotia palmarum ) के कारण होता है| 90% तक पर्ण क्षति| दालचीनी उगाने वाले सभी क्षेत्रों में फैली सबसे गंभीर बीमारी|

Organic Solution:

फसल को बढ़ावा देने के लिए नीम केक @ 40 किग्रा/एकड़ का उपयोग केवल नेमाटोड प्रभावित क्षेत्र में सुनिश्चित नमी की स्थिति में करें| बोर्डो मिश्रण 1% का छिड़काव करके रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

Chemical Solution:

क्लोरोथालोनिल 75% WP, Carbendazim 50% WP, Mancozeb 80% WP या थिफेनेट-मिथाइल 70% WP का छिड़काव 7-l0 दिनों के अंतराल पर करें

अक्सर पूछे जानें वाले प्रसन्न

दालचीनी के क्या क्या फायदे हैं?

पतंजलि के अनुसार, दालचीनी के सेवन से पाचनतंत्र संबंधी विकार, दांत, व सिर दर्द, चर्म रोग, मासिक धर्म की परेशानियां ठीक की जा सकती हैं। इसके साथ ही दस्त, और टीबी में भी इसके प्रयोग से लाभ मिलता है।

दालचीनी को कैसे सेवन करना चाहिए?

सुबह खाली पेट दालचीनी खाने से आपको पेट में जलन, ब्लोटिंग की समस्या और कब्ज में भी फायदा मिलता है। पेट में संक्रमण की समस्या में भी दालचीनी का सुबह खाली पेट सेवन बहुत फायदेमंद माना जाता है। आप दालचीनी का सेवन पाउडर, दालचीनी के पानी या दालचीनी की चाय के रूप में कर सकते हैं।

दालचीनी खाने के क्या नुकसान है?

त्वचा को पंहुचा सकता है नुकसान दालचीनी की बात करें तो इसमें बर्निंग इफ़ेक्ट होता है,इसलिए इसके ज्यादा सेवन से आपको जलन की समस्या भी हो सकती है।
>सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
>ब्लड शुगर अधिक मात्रा में कम हो जाता है।
>लिवर की सेहत को हो सकता है नुकसान
>होठों और मुँह में एलेर्जी को बढ़ाता है।

दालचीनी और दूध पीने से क्या होता है?

अगर आप दूध में दालचीनी मिलाकर पीने के भी जबरदस्त फायदे हैं. पाचन तंत्र को दुरुस्त करने से लेकर नींद नहीं आने और ब्लड शुगर कंट्रोल करने से लेकर त्वचा पर निखार लाने में भी यह कारगर उपाय है. ऐसे में आइए जानते हैं कि कैसे दालचीनी औऱ दूध का मिश्रण आपकी सेहत के लिए है फायदेमंद।

दालचीनी की खेती कहाँ होती है?

दालचीनी दक्षिण भारत का एक प्रमुख वृक्ष है. इस वृक्ष की छाल का औषधि और मसालों के रूप में प्रयोग किया जाता है. दालचीनी (Cinnamon) एक छोटा सदाबहार पेड़ होता है, जो कि 10–15 मीटर ऊँचा होता है. ( cinnamon farming) दक्षिण भारत के केरल और तमिलनाडू में इसकी पैदावार की जाती है ।

दालचीनी का पौधा कहां मिलेगा?

दालचीनी का पौधा आप अपने नज़दीकी नर्सरी से ख़रीद सकते हैं, ये ज़्यादातर आसानी से उपलब्ध होता है। गाँव क़स्बे में नहीं मिलने पर ज़िला मुख्यालय के अलग अलग नर्सरी दुकान से ले सकते हैं।

दालचीनी का बीज कैसा होता है

दालचीनी का बीज

हम में से ज़्यादातर लोग कद्दू के बारे में जानते ही होंगे यहाँ हम बताना चाहेंगे कि दालचीनी का बीज दिखने में काफ़ी हद तक कद्दू के बीज की तरह ही होता है।

दालचीनी कहां मिलती है?

वैसे तो दालचीनी की खेती दक्षिण भारत में होती है लेकिन पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि उत्तर भारत के कई राज्यों में किसान दालचीनी की खेती करने लगे हैं।

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